Monday, November 21, 2011

कस्तूरी कुंडली बसे मृग ढूंढे वन माहि| ऐसे घट-घट राम है दुनिया देखे नाहि|| ..........................एकबार ईश्वर ने सब प्राणियों को बुलाया....परन्तु मनुष्य को जन बुझकर नही बुलाया.ईश्वर परमसत्य को मनुष्य के पहुँच से बाहर रखना चाहते थे.उन्होंने सभी प्राणियों से सुझाव माँगा कि परमसत्य को कहा छुपाया जाए.सबने अलग-अलग सुझाव दिए,लेकिन हर जगह मनुष्य की पहुँच स्थापित हो रही थी.बहुत देर बाद एक प्राणी ने कहा क्यों न परमसत्य को इन्सान के दिल में रखा जाए.उस प्राणी ने कहा कि इन्सान हर स्थान पर परमसत्य को तलासेगा,बस अपने अन्दर ही नही झाकेगा. यह बात एकदम सत्य है.....हम ईश्वर के खोज में भटकते रहते है....लेकिन अपने आत्म में जो बसा है उसे नही देख पाते.हमारी हालत कस्तूरी मृग की तरह है...जिस सुगंध की तलाश में वो भटकती रहती है.....वो उसके अन्दर ही बसी है.

No comments:

Post a Comment