Friday, November 18, 2011

आज जो देश की दुर्दशा है उसका बखान शब्दों में नहीं किया जा सकता है.देश की बागडोर एक ऐसे आदमी के हाथ सौपा गया जो खुद तो इमानदार है लेकिन अपने साथियों द्वारा देश की सम्पदा के लुट में उनके ऊपर नियंत्रण नहीं कर सका बल्कि अपने टीम में वकीलों की टोली बनाकर उनके बचाव में तरह-तरह के शब्द जाल बनाकर भरमाता है .किसी पर प्रधानमंत्री का नियंत्रण नहीं है.जिसको जो मन में आता है उसे बोलने के लिए उत्साहित किया जाता है.कोई कहता है कि इतने बड़े घोटाले में सरकारी सम्पति को कोई नुकशान नही हुआ.कभी राष्ट्रमंडल खेल घोटाला में उसके अध्यक्ष एवं दिल्ली सरकार को बरी किया जाता है.किसी को भी बेज्जत करना मामूली सी बात है.कभी अन्ना को' तुम', 'चोर','दगाबाज' कहा जाता है.कभी देश में आतंकबादी हमला होता है,सरकारी मशीनरी जाँच भी शुरू न कर पाए महाशयजी को बहुशंख्यक लोगो के हाथ नज़र आने लगते है.अब अन्ना के आन्दोलन में अमेरिका का हाथ नज़र आ रहा है.कभी रामदेव बाबा जैसा हश्र करने की बात कहते है.सरकार का मुखिया गांधीजी के तीन बंदरो की तरह आँख से नही देखना,कान से नही सुनना और मुंह से नही बोलने का रोले अदा करते है.
वश्तुस्थिति यही है कि नाव प्रधानमंत्रीजी के पास है उसपर लादे जीव-जंतु किसी दुसरे व्यक्ति के नामित है.जिनपर अनुशासन ,नियम कुछ भी लागु नही होता एवं पतवार मालिक के हाथ में है.प्रधानमंत्रीजी या तो आप पतवार मांग कर लीजिये या गद्दी छोर दीजिये.देश को बिना पतवार के नाविक कि तरह समुद्र में न डुबाये.मेरी यही प्रार्थना है.

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