Wednesday, June 1, 2016

प्रवासी







                                         प्रवासी
मैं मंदिर की सीढ़ी पर बैठा बस निहारे जा रहा था |वहाँ से जो भी नज़र आ रहा था | तालाब,खेत,खलिहान,बागीचा,पगडंडी सब बस नज़र में कैद कर लेना चाहता था | अचानक पीछे से आकर केशव ने मेरे कंधे पर हाथ रखा |“चल यार कल केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान चलते है,वहाँ हम अभी साईबेरिया से आये सारस देख सकते है” केशव ने कहा | लेकिन कल सुबह मुझे दिल्ली के लिये निकलना है,मैने उसे भरतपुर जाने से मना कर | प्रवासी शब्द अब मुझे अपना-सा लगने लगा है| 
तीन भाईयों में मैं सबसे छोटा हूँ | बड़े भाई साहब बैंक में कार्यरत है | मंझले भाई साहब गाँव के प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक है | स्नातक होने के बाद मैं कानून की पढाई करना चाहता था | परन्तु दोनों भाई-भाभी अक्सर ताना देते “आसान नहीं है वक़ालत करना”|
एकदिन माँ ने एकांत में समझाया “वक़ालत के भरोसे मत बैठ,दिल्ली चला जा,तेरा दोस्त मोहन वही है ना वो तेरी मदद करेगा “ | घर की परिस्थिति देखकर मुझे भी माँ की बात सही लगी |
दिल्ली की जिंदगी एकदम अलग थी | एक छोटे से कमरे में पांच-छह लोग | सुबह उठते ही प्रतिदिन की जंग शुरू हो जाती | पहले पानी से, फिर ट्रैफिक से,फिर फक्ट्री में काम से और सहकर्मी और प्रबंधक से | जब थक-हार कर घर पहुँचता तो लगता चलो आज का दिन तो किसी तरह बीत गया | गाँव,घर,आँगन सब पीछे छूट गया | एक महानगर में अकेला पड़ गया | दिल्ली में मिलने वाले लोग पूछते है “कहाँ से हो ?” |
सालभर बाद गाँव आया हूँ | हाल-चाल और तनख्वाह पूछने के बाद एक ही सवाल रहता है उनका कि मैं वापस दिल्ली कब जा रहा हूँ |

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