Wednesday, April 15, 2020


भूगोल का गोल
हमसब किसी एक या दो विषय को अधिक पसंद करते हैं और उस विषय को ज्यादा पढ़ते और जानने लगते है| फिर कुछ तो हमें जिंदगी में बस सीखनी ही पड़ती हैं, जैसे गणित और भाषा| इनके बिना गुजरा नहीं हो सकता| कुछ-कुछ विज्ञान भी समझना जरुरी हो जाता है| जब कुछ पुरानी बातें पढ़ते,सुनते या कोई ऐसी सिनेमा देखते है,जैसे पिछले कुछ सालों में प्रदर्शित ‘जोधा-अकबर’, ‘पद्मावत’, ‘बाजीराव मस्तानी’ इत्यादि तो इतिहास में रूचि आने लगती हैं| चुनाव होने वाला होता है और नेतागण की बातें सुनकर लगता है,क्या हमारा समाज इतना पिछड़ा हुआ है, ये महाशय सब ठीक कर देंगे क्या? स्वास्थ और शिक्षा पर किसी का ध्यान क्यों नहीं गया आजतक? समाजशास्त्र जान लेते है| एक पार्टी चुनाव जीत सरकार बनाती है| मंत्री-प्रधानमंत्री देश-विदेश का दौरा करने लगते है और मंत्री महोदय चुनाव के पहले किया वादा भूल कर समाज के स्थान पर अपने विकास पर ही ध्यान केन्द्रित करते है,तब राजनीतिशास्त्र समझ में आ ही जाता है|
लेकिन भूगोल जानने के लिए आपको पढ़ना या घूमना पड़ता है | कोई और तरीका नहीं है इसे समझने का | २०१४ में मैं जमशेदपुर से हैदराबाद आई| काफ़ी लोग जमशेदपुर नाम सुनकर ऐसे चौंकते जैसे यह शहर इस ग्रह पर नहीं है| एकबार जब मैं जमशेदजी टाटा, टिस्को, टेल्को, टाटा ट्रक के बारें में पड़ोस में रहने वाली महिला को बताने लगी तो उनका कहना था कि टाटा तो विदेशी कंपनी है| फिर झारखंड में कैसे हो सकता है?
एकबार हमलोग ओडिशा गए भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने| जब मेरी ननद को पता चला तो कहने लगी “जब पूरी गए तो रामेश्वरम् भी चले जाते”| कहाँ पूरी और कहाँ रामेश्वरम्? उनके कहने से लग रहा था समुद्र के किनारे-किनारे सब शहर के एक कॉलोनी से दूसरे कॉलोनी जैसा ही होगा|
बहुत कम लोग मिले जो मेरे बिहारी होने का सुनकर बिहार की तारीफ़ करने लगे हो | एकबार किसी वर्कशॉप में एक वरिष्ट शिक्षिका मिली | जब बातों-बातों में उन्हें पता चला कि मैं बिहार से हूँ तो वह बहुत खुश हुई| “क्या बात है! बहुत ख़ुशी हुई” – ऐसा उन्होंने कहा| मेरे साथ जो शिक्षिका थी वो महाराष्ट्र से है, वो कहने लगी मैडम मैं महाराष्ट्र से हूँ और बिहार-महाराष्ट्र आस-पास ही हैं| मैं फिर अचंभित और हतप्रभ!

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